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Thursday, February 19, 2009

बहुत बार कहना चाह था में पर. तुम नही समझे

बहुत बार कहना चाह था में पर. तुम नही समझे

हमारी दोस्ती और प्यार के भीच की पतली लाखीर में पार कर नही पतों नाज्देकियो का सबब बताना चाह था में पर. तुम नही समझे

संग चाहता था तुम्हारे, सादा के लिए तुम्हारे लिए अपना प्यार जाताना चाह था में पर. तुम नही समझे

कभी झाककर मेरी आंखों में देखा होतासारी दस्ता पड़ लेते तुम्बे इन्तहा प्यार झलकता था तुम्हारे लिए इन में पर. तुम नही समझे

बदल को पर कर, तारो के चादर से जब छलकती चांदनी छु था मुझ्कोतो लगता बाहों में भर लिया तुम नेमें तडपता रहा तुम्हारे लिए पर इस तड़प को...तुम नही समझे

अपना काम, अपने दोस्त, अपने सपनो में खोया रहा, अपनी मसरूफियत से तुम्हें न वक्त मिला, मेरे सपने, मेरी आरजू, मेरे अरमानो को...तुम नही समझे

अपने अरमानो को दफना कर जब में किसी और का हुआ मेरे आन्सो पोचते तुम, मुझे समझाते राहयूं आंसू का कारण, अपना प्यार खोने की तड़प, मेरी अधूरी कहानी को... तुम नही समाझे

- LoveNismi ( Ansh Rav)

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